दिन का चैन रात की निंदिया दोनों खो के बैठ गई मोह माया के चक्कर में नाम हरी का भूल गयी
बालकपन में खेली खाई सखियों के संग मस्त भई , सयानी हो गई शादी कर दी दो परिवारों में बांट दई , कभी पीहर में कभी सासुरे आन जान में लगी रही मोह...
पहली अवस्था चालू हो गई बेटी बेटा होने लगे , पालन पोषण करने लग गई दिन और रात में मग्न रहे , बाद में सोऊं बखते ऊठ लूं बन कोल्हू का बैल गई मोह...
दूसरी अवस्था चालू हो गई बेटी बेटा ब्याहन लगी , किसका कपड़ा किसके गहने किसका घर बनवाने लगी , जिम्मेदारी पूरी हो गई चुप होके मैं बैठ गई मोह...
तीसरी अवस्था चालू हो गई पोती पोता होने लगे , बेटे न्यारे होने लग गये मां का साझा कुछ नहीं , ये घर तेरा ये घर मेरा मां की खाट का ठौर नहीं, गम खाके मैं बैठ गई मेरी लागी चोट जिगर के मैं मोह...
ओरी बहना हुआ सबेरा अब सोबन का टाइम नहीं , सारी सखियां इकट्ठी हो ली हरी भजन में लाग गईं , दिन का चैन रात की निंदिया दोनों खो के बैठ गई मोह..
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