है तन पे भस्मी गले में विषधर नमामि शंकर नमामि शंकर
तुम्हारे मन्दिर में नित्य आऊं प्रेम से तुमको मैं जल चढ़ाऊं केसर चन्दन का तिलक लगाऊं नमामि शंकर...
हे जग के स्वामी कैलाश वाशी तेरे दर्श की मैं हूं प्यासी रहूंगी दर पे हरदम हे भगवन नमामि शंकर.....
बायें अंग में गौरा बिराजें गोदी में तेरे गणपति साजें तुम्हारे आगे बैठे हैं नंदी नमामि शंकर....
तुम्हीं हमारे हो एक स्वामी आ जाओ अब तुम ओ अंतर्यामी हरो हमारी व्यथा को आकर नमामि शंकर......
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