प्रभू कैसा खेल रचाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने कैसे यह आकाश बनाया ना खंबा एक लगाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने तरह तरह के पेड़ बनाए यह बीज कहां से लाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने तरह तरह के फूल खिलाए ये सुगंध कहां से लाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने तरह तरह के भोग बनाए यह स्वाद कहां से लाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने तरह तरह के लोग बनाए यह चेहरे कहां से लाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
तूने तरह-तरह के भाग बनाए तकदीर कहां से लाया है यह मेरी समझ नहीं आया है
No comments:
Post a Comment