कलकत्ता से चली कालका छम छम करती आई मेरे भक्तों ने मुझे पुकारा पल में दौड़ी आई कोलकाता से चली भवानी..
टीका तो मां पहने खड़ी हैं बिंदिया लेकर आई झुमका तो मां पहने खड़ी हैं नथुनी लेकर आई कोलकाता से चली कालका छम छम करती आई
क्या भक्तों तुम्हें कष्ट सताया क्यों मुझको है बुलाया धन दौलत मुझे कुछ ना चाहिए तेरे दर्शन पाऊं कलकत्ता से चली कालका छम छम करती आई
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले काली मैं आई कलकत्ता से चली कालका छम छम करती आई
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