पहाड़ों की ऊंची चढ़ाई रे भोले मैं दर्शन को आई रे
मैं तो जल भर कलश ले आई रे झाड़ी जंगल चढ़ आई रे , सांप बिच्छू ने ऐसी डराई रे मेरी गागर उछलती आई रे
मैं तो केसर चन्दन लाई रे श्मशान देख घबड़ाई रे , मुझे भूतों ने ऐसी डराई रे सारी चन्दन बिखरती आई रे
मैं तो भंगिया घोंट के लाई रे द्वारे नंदी को बैठे पाई रे, नंदी ने मोहे बताई रे भोले ने समाधि लगाई रे
मै तो हार गूंथ के लाई रे शिव जी के गले पहनाई रे , भोले ने पलकें उठाई रे शिव गौरा के दर्शन पाई रे
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