मेरी संतोषी माता मेरी संतोषी माता बड़ी कल्याण मयी बड़ी कल्याण मयी
एक नारी थी जो उसकी साड़ी फटी अपने घर में वो दासी सी रहती सदा
पति परदेश गया सास ने टोक दिया बड़ी कल्याण मयी
लकड़ी लेने गयी जंगलो को चली वहां मंदिर में माता के दर्शन हुए
माँ का नाम सुना महिमा ज्ञान सुना बड़ी कल्याण मयी
मन में भक्ति जगी व्रत वो करने लगी ध्यान माता के चरणों में उसका लगा
तन के कष्ट हरे मन के दुःख हरे बड़ी कल्याण मयी
जो भी करता हैं ध्यान वही पाता हैं मान सदा सुख की ये झोली भरती आ रही
पति घर लौट आया धन सम्पति लाया बड़ी कल्याण मयी
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