राम आये जनक की नगरिया धनुष टूटे न वाली उमरिया
बैठे जनक सोच अति भारी , क्या मेरी सीता रहें कुंवारी शोक छाई जनक की नगरिया धनुष न टूटे वाली उमरिया
राम लखन दोनों भ्राता आये , संग में विश्वामित्र को लाये खुशी छाई जनक की नगरिया धनुष टूटे न वाली उमरिया
ले जयमाल सिया जी आईं , सखियां मन ही मन मुस्काईं नैन मिल गये सिया संग सांवरिया धनुष टूटे न वाली उमरिया
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