हरी ने पूंछ लिया बैकुंठ जाना है मैंने भी पूंछ लिया क्या वहां बरसाना है
कहां है स्वर्ग में ऊंची अटारी के दर्शन , न है रंगीन गली और न है गैहर वन , हमें तो अपने घनश्याम को रिझाना है मैंने भी पूंछ लिया क्या वहां बरसाना है
कहां मोहन को देखूं चीर जब चुराते हैं , कहां सखियों के संग राधा को मनाते हैं , मेरा मन मन्दिर गोविन्द का दीवाना है मैंने भी पूंछ लिया क्या वहां बरसाना है
कहां आनंद होगा माखन चुराने का , न ही रसपान होगा इतनी मीठी बोली का , मुझे तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण गाना है मैंने भी पूंछ लिया क्या वहां बरसाना है
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