मुझे माँ से गिला, ऐसा क्यों है किया बेटिया क्यों परायी हैं बेटियां क्यों पराई हैं
खेली कूदी मैं जिस आँगन में, वो भी अपना पराया सा लागे ऐसा दस्तूर क्यों है माँ, जोर किसका चला इसके आगे , एक को घर दिया, एक को वर दिया, तेरी कैसी खुदाई है बेटियां क्यों पराई हैं मुझे माँ से गिला...
जो भी माँगा मैंने बाबुल से, दिया हंस हंस मुझे बाबुल ने प्यार इतना दिया है मुझको, क्या बयां मैं करू अपने मुख से , जिस घर में पली, उस घर से ही माँ, यह कैसी बिदाई है बेटियां क्यों पराई हैं मुझे माँ से गिला...
अच्छा घर सुन्दर घर देखा माँ ने, क्षण में कर दिया उनके हवाले जिंदगी भर का यह है बंधन, कह के समझाते हैं घर वाले देते दिल से दुआ, खुश रहना सदा,कैसी प्रीत निभायी है बेटियां क्यों पराई हैं मुझे मां से गिला...
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