चली जा रही है उम्र धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
बचपन भी जाये जवानी भी जाये , बुढ़ापे का होगा असर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
तेरे हाथ पांव में बल न रहेगा , झुकेगी तुम्हारी कमर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
शिथिल अंग होंगे सब एक दिन तुम्हारे , फिर कम होगी नजर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
बुराई को अपने तू मन से हटा ले , सुधर जायेगा ये जीवन धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
भजन कर ले हरी का तू हर पल ओ प्यारे , मिल जायेगा वो सजन धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे
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