हरी भजन : सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे (हम सबके जीवन की सच्चाई सुनिए वरूथिनी एकादशी के दिन)

 

 

चली जा रही है उम्र धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 

बचपन भी जाये जवानी भी जाये , बुढ़ापे का होगा असर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 

तेरे हाथ पांव में बल न रहेगा , झुकेगी तुम्हारी कमर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 

शिथिल अंग होंगे सब एक दिन तुम्हारे , फिर कम होगी नजर धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 

बुराई को अपने तू मन से हटा ले , सुधर जायेगा ये जीवन धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 

भजन कर ले हरी का तू हर पल ओ प्यारे , मिल जायेगा वो सजन धीरे धीरे सुबह शाम आठो पहर धीरे धीरे 




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