माता अनुसूया के द्वार भिक्षा मांगें हाथ पसार ब्रह्म विष्णु शिवशंकर आये हैं द्वार पर
माता अनुसूया बोली आओ परमात्मा प्रेम से भोजन कर लो तीनों महात्मा , तीनों बोले साथ साथ सुन लो मेरी एक बात ब्रह्म विष्णु शिवशंकर आये हैं द्वार पर
वस्त्र हीन होकर के भोजन बनाना अपने ही हाथों से हमको खिलाना , बरना साफ करो इनकार ढूंढें और कोई द्वार ब्रह्म विष्णु शिवशंकर आये हैं द्वार पर
सुनकर माता बोलीं भोजन बनाऊंगी अपने ही हाथों से तुमको खिलाऊंगी , दे दिया बालक का अवतार झूलें पलना तीनों कुमार ब्रह्म विष्णु शिवशंकर आये हैं द्वार पर
इतने में लक्ष्मी गौरा ब्रम्हाणी आईं आकर के जब ये देखा बहुत सकुचाईं , बोलीं दे दो पति हमार तुम गई जीत हम गये हार ब्रह्म विष्णु शिवशंकर आये हैं द्वार पर
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